तुम समझते क्यों नहीं हो in story

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" तुम समझते क्यों नहीं हो , इतनी जल्दी शादी मुमकिन ही नहीं । अम्मी , बाबा ज़िन्दा होते तो और बात थी । मगर अब । " अनीक़ा ने दूर बहुत दूर आसमान की तरफ देखते हुए खोए खोए लहजे में कहा और फिर मायूसी से गर्दन झुका ली । वह आंखों में आए आंसू सामने बैठे शानदार मर्द से छुपाना चाहती थी । सालार ने बस एक बार उसे रोता देख कर अपने सीने पर दिल की जगह उंगली चुभो कर दर्द से कहा- " अगर इसको तकलीफ़ देना चाहती हो तो ख़ूब आंसू बहाया करो । मग़र यह बात याद रखना अब यह मेरा दिल नहीं रहा । तुम्हारा हो चुका है शायद । अपनी चीज़ की केंद्र तो सब ही करते हैं ना । " उसने आंसू पोंछ कर फ़ौरन हां में सर हिला दिया । सालार के जज़्बों के एहतराम ( आदर ) में अनीक़ा ने उसके सामने आंसू बहाना छोड़ दिया । यह और बात है कि तन्हाई में अक्सर उसका तकिया भीग भीग जाता । सालार खन्खारा और उसके सामने अपना चौड़ा मर्दाना हाथ लहराया । वह चौंक कर होश में आई । " मैं इतनी जल्दी शादी के लिए तय्यार नहीं हूं । मुझे अभी अपने और अरीबा के लिए बहुत कुछ करना है । " वह चटस कर बोली । " प्लीज़ बचकाना बातें छोड़ दो । अभी शादी करने में कोई बुराई नहीं । वनों सोच तो फिर मैं दो साल के लिए दिल्ली चला जाऊंगा । तुम यहां अकेली बैठी चैन की बान्सुरी बजाती रहना । " यह भी भड़का । दोनों की लड़ाई शुरू । पहले अनीका ने उसे मुंह चिढ़ाया फिर सालार ने उसके मुंह पर चपत लगा दी । वह नाराज होने लगी तो सालार को ख्याल आया कि वह इतनी सर्दी में बहुत अहम बात करने यहां आया हुआ है । जल्दी से अस्त बात की तरफ लोटा । " तुम्हें पता है ना नई नई जाब लगी है । दो साल का कान्ट्रेक्ट किया है । अब फैसला वापस नहीं ले सकता । अगर इतनी अच्छी आफ़र न होती तो तुम्हें छोड़ कर दूसरे शहर जाने का सोचता भी नहीं । मगर अब मजबूरी है । में सोच सोच कर बिल्कुल पागल होता रहा तो यही बेहतर हल नज़र आया कि तुम्हें भी साथ ले जाऊं । अब तुम क्या कहती हो ? " सालार ने माथे पर हाथ मारा । बेवकूफ कुछ समझने को तय्यार ही नहीं कि उसके लिए अनीका के बगैर दो साल गुज़ारना मुश्किल होगा । सालार के बगैर मुस्किल में तो वह भी पड़ जाती मगर कैसे मुंह खोल कर कह देती । अपने जज्बात का इज़हार करने में उसकी शर्म रुकावट बनने लगी । " ऐसा मिर्चों भरा कबाब खाने को किसने कहा था ? ठुकरा देते यह आफर । " उसका लहजा तग करता हुआ सा था । गया । • सालार का दिमाग घूम गया उसकी तरफ देखा तो खामोश हो : • भोली सी सूरत पर नाराजगी के बादल छाए हुए थे । उसकी दिलरुबाई में कमी ही होती । फिर सालार दिल को क्यों कुसूरवार ठहराता । " " चल बेटा ! उसे मना ले वर्ना ज़िन्दा के सारे रंग फीके पड़ने वाले हैं । " वह होन्द्र लटकाए घास नोचती मन मोहनी सी लगी । दिल को कुछ हुआ । सब के घन्ट पीते हुए सालार ने उन्ही सांस भरी और उसकी तरफ मुकम्मत तौर पर मुड़ा । " मेरी जानू ! आपका कहना सही । बिल्कुल ऐसा ही करता अगर यह कोई ओनी पौनी जाब होती । " सालार ने घास का तिनका तोड़ा और उसे चुभो दिया । " सातारा तुम्हारा सुधरना मुश्किल है , बढ़ा मुश्किल है । " यह बुरे तरीके से तप सी गई । " अरे कहां में इतना मासूम हूं जाने क्यों दोनों बहनों को बुरा लगता हूं । " सालार ने मुंह बना कर कहा । " बस बस रहने दो । मुझे कुछ नहीं सुनना । तुम मुझे छोड़ कर चले जाओ । " धुली धुली सी घास बहुत भली लग रही थी मगर अनीका को नहीं । वह उठ कर मुंह फुला कर अन्दर की तरफ जाने लगी तो सालार ने उसका हाथ पकड़ कर दोबारा बिठा दिया- " यार ! तुम समझ ही नहीं रही हो । मेरा उन लोगों से • जुड़ने में कितना फायदा है । मार्किट में • रब्बानी बिल्डर्ज का बहुत बड़ा नाम है । उन्होंने मुझे दिल्ली में अपने नए प्रोजेक्ट के लिए इतने सारे लड़कों में से चुना है । वह भी बगैर किसी सिफारिश के । सिर्फ मेरी कावलियत की बिना पर । और मैं उसे अपनी और तुम्हारी खुश किस्मती समझता हूं । तुम हाल ( वर्तमान ) से परीशान हो मगर मेरी नज़रे फ्यूचर पर हैं । हमारे आने वाले कल को अच्छा बनाने के लिए थोड़ी कुर्बानियां तो देनी पड़ेंगी ना । मेरी ज़िन्दगी का पार्टनर बनने जा रही हो तो तुम्हें मेरे को भी समझना पड़ेगा । तुमको प्रान्तम्ज अन्दाज़ा नहीं कि इस कम्पनी से जुड़ कर मुझे फ़ील्ड में काम करने का कितना तजरिवा हासिल होगा । खैर यह बातें तुम्हारी छोटी और प्यारी सी अक्ल में फिट नहीं होने वाली । तुम बस एक काम करो कि शराफ़त से मेरी बीबी बन कर साथ चली चलो । " सालार ने प्यार लुटाती निगाहों से उसे देखा और की चैन उसके सर पर मारते हुए क़रीब आकर कान में कहा । उसके अन्दाज़ पर अनीका शर्म से लालो लाल होने लगी । उसका नज़रें उठाना मुश्किल हो गया । जिसका फायदा सालार ने उठाया । वह अपनी फार्म में वापस आ गया । " वैसे तुम सोच लो कोई जल्दी नहीं । मुझ जैसे हैन्डसम बन्दे को तो दिल्ली की कोई गोरी चिट्टी प्यार करने वाली लड़की मिल ही जाएगी मगर अपना सोचो । तुम्हें तो कोई काला भी नहीं पूछेगा । " सालार ने अपनी मंगेतर की शर्माहट को भरपूर इतज्वाय किया और लगा छेड़ने । वह उसके सांवले सलोने रूप पर मरने के बाबुजूद उसका रिकार्ड लगाने से चूकता नहीं । अनीका ने भी चिड़ना छोड़ दिया वर्ना वह और पीछा ले लेता । " नहीं जी , एक ही बहुत है , दूसरा किसे चाहिए । " अनीका ने दिल ही दिल में कहा मगर मुंह से एक लफ्ज़ न निकाला । इस तरह खुल्लम खुल्ला मुहब्बत का इज़हार उसे आसमान पर चढ़ाने जैसा था । वैसे ही वह अपनी तारीफें करने का बहुत शौक रखता था । " उफ़ लोगों को अपने बारे में कितनी खुश फहमियां होती हैं ना । " उसने अदा से निगाहें उठायीं और बोली । मगर ज्यादा देर तक उस जान की दुश्मन से निगाहें न मिला सकी सो झुका ली । सालार की घनी पलकों वाली ब्राउन आंखों से अनीका के लिए मुहब्बत का ऐसा दरिया बहता कि वह लहरों संग बहती चली जाती । सालार सिर्फ उसका मंगेतर ही नहीं . बल्कि फ़सीहा फुप्फो की बड़ी औलाद , मामूं की आंख का तारा । उनसे लाड उठवाने यहां चला आया । बचपन से वह उन दोनों बहनों का दोस्त , हमदम , साथी बन गया । ज़व्वार उन सबसे बड़ा होने की वजह से जरा दूर दूर ही रहता । बच्चों की मुहब्बत ने बड़ों के बीच एक जाल बुन दिया । दोनों घरानों में हर वक्त का आना जाना लगा रहता । इस उम्र में जबकि उन्हें मुहब्बत का मतलब भी समझ नहीं आता सालार अनीका का साया बना रहता । अपने सारे दुख सुख उससे कहता सुनता । वह अकुलमन्द बनी उसकी उल्टी सीधी बातों पर सर हिलाती रहती । पहले अब्बू और फिर अम्मी की मौत के बाद दोनों को अपना होश ही न रहा । ग़म भी ऐसा जिसका कोई इलाज नहीं । जाने वालों का दुनिया में कोई बदल नहीं । वक़्त लगता है जख्मों पर सुरन्ड आने में । फिर कैसे इतनी जल्दी सब भूल भाल दुनिया के झमेलों में लौट आती । जब्बार के साथ साथ फ़सीहा और सालार की मुहब्बत उनके ज़ख्मों पर मरहम बनी वर्ना वह दोनों बहनें ग़मों के तूफान में ही फंसी रहतीं । निकलना नामुमकिन हो जाता । उसके दिल्ली जाने का सुनते ही अनीका को सांस लेने में परीशानी होने लगी । सालार की शख़्सियत का चार्म उसके सोने जैसे दिल की वजह से बढ़ जाता । वह सच्ची मुहब्बत करने और सबका ख़्याल रखने वाला । उसके बग़ैर तो पूरा शहर ही वीरान हो जाता । मगर फ़ौरन ही शादी की आफ़र । वह उलझन का शिकार हो गई । " मैंने शादी के बड़े रंग रंगीले ख़्वाब देख रखे थे । उनको पूरा करने के लिए मैं पहले अपने पांव पर खड़ी हूंगी , जाब करूंगी इसके बाद शादी का सोचूंगी । " अनीका ने नज़रें चुराते हुए सालार की ज़िद पर कुछ बेवकूफाना सा फलसफा झाड़ा । " तुम क्यों फ़ालतू के बहाने बना कर मुआमले को खींचना चाहती हो ? " सालार ने सन्जीदगी से पूछा । उसे लगा अस्त बात कुछ और है क्योंकि वह जो कुछ कह रही थी उन बातों में इतना दम नहीं । उसे अपने दिल से ज्यादा अनीका के दिल की ख़बर थी । वह सालार से बात किए बगैर एक दिन भी न गुजारती । अगर वह पूरा हफ्ता कहीं बिज़ी हो जाता तो उसका बीपी डाउन होने लगता । अब जबकि सालार ने बड़ी मुश्किलों से मम्मा को राजी किया तो उसके नखरे शुरू । सालार को यक़ीन हो चला कि कुछ तो दाल में काला है । शादी की बात छिड़ते ही फसीहा ने बेटे को वार्निंग दी कि वह पहले दिल्ली जाकर • सेंटिल होने की कोशिश करे फिर शादी करें अनीका को ले जाए ताकि उनकी लाडल भतीजी को दूसरे शहर में किसी क़िस्म परीशानी का सामना न हो | मगर साली ने दूसरे शहर में अपने मसअले का ऐस भयानक नशा बताया कि उनका कलेज मुंह को आ गया । फौरन शादी की तारीस तेने को राजी हो गयीं । सालार ने यही सुरु खबरी उसे सुनाई मगर वह पता नहीं कि झमेलों में पड़ गई । सालार सिर्फ अपने लिए नहीं बलि अनीका के लिए भी उससे सर खपा रह था । अनीका जैसी पागल लड़की को यह छोड़ कर जाने का मतलब तन्हाई के साथ साथ शक में मुब्तिता करना । उसका कुछ भरोसा भी नहीं कि सोच सोच कर बीमा ही पड़ जाए । वह तो समझ रहा था यह बात सुन कर अनीका उछल पड़ेग इसलिए इतनी ठन्ड में भी सुबह सुबह शाद की खुश खबरी सुनाने दौड़ा भागा मामू घर चला आया । मगर उसकी उम्मीद खिलाफ़ जिसके लिए उसने मां के सामने शूट सच किया वह गुमसुम सी बैठी पौदो को घूर रही थी । " पता नहीं मगर इतनी जल्दी भाभी और भाई राजी भी होंगे कि नहीं । पैसे भी शादी कोई दो पैसे का खेल नहीं । सूखा मुंह बनाया । अनीका ने फ़्लासपुर की तरह सोचते शादी सालार की हंसी निकल गई । अनीक ने उसे पूरा तो उसके दांत अन्दर चले गए । " अच्छा तो यह मसअला है । के खर्चों की फिक्र सवार है । चलो जानम हम यह मसअला भी हल किए देते हैं । फेरते लान की भीगी घास पर हाथ हुए सालार उसकी तरफ देख भी रहा था और नहीं भी क्योंकि दिमाग़ कहीं और ताने बाने बुनने में बिज़ी हो गया । वह जानता था कि जब्बार पर सारे घर का बोझ है । शायद उसे अपने भाई पर अकेले शादी का बोझ डालना गवारां न था । मौसम बड़ा रूमान्टिक होने लगा । सर्दी क्या शुरू हुई फ़ज़ाओं पर धुन्द सी छा गई । ऐसे जानलेवा मौसम में वह बहार और खिज़ा ( पतझड़ ) का मिलन बनी दिल को सुभाने की वजह बनी सालार का इम्तिहान लेने लगी । उतरे चेहरे की उदासी दूर करना जरूरी हो गया । लान में रात भर गिरने वाली शबनम ने हर चीज़ को भिगो दिया । सालार की आंखों में हीरे से चमक उठे । शरारत जो सूझी तो उसने अपने भारी हाथ से ओस चुराई थी और अचानक पीछे से आकर अनीका के नर्म गालों को ढांप दिया । ठन्ड की एक लहर करन्ट की तरह उसके अन्दर दौड़ गई । सालार को गर्म सी नर्मी बहुत अच्छी लगी मगर अनीका जो सोच , में खोई हुई थी एकदम चीख उठी । सर्दी उसके अन्दर उतर गई । उसने धकेल कर सालार को दूर किया । वह देर तक हंसते . हुए उसके गुस्से से मज़ा लेता रहा । " क्या करते हो ? तुम्हें पता है ना मुझे कितनी सर्दी लगती है । ऊपर से इतनी सुबह आकर मेरी नीन्द ख़राब कर दी । इन बातों के लिए यही वक्त मिला था ? बाद में आ जाते । " अनीका जो बहुत देर से मुरव्वत में यहां बैठी कुछ बोल नहीं सकी अब दिल की भड़ास निकालने का मौका उसके हाथ आ गया । हरे स्वेटर के ऊपर ब्राउन कलर की शाल लपेटे होने के ब के बावजूद सर्दी से उसका बुरा हाल । और वह पिंक रंग की शर्ट और ब्लू जीन्ज़ में फ्रेश फ्रेश सा मोसम को इनज्वाय करने वाला । वैसे भी सर्दियां उसे हमेशा से भाती । उस झल्ली ( पागल ) को नर्म गर्म विस्तर से निकल कर ऐसे ठन्डे मौसम में सातार का मुहब्बत का इज़हार सुनना भी गवारा न था । उस पर से उसके ठन्डे हाथों का एहसास । अनीका को कंपकपी सी लग गई और सालार की शरारत । वह जल ही उठी । " सुबह सुबह , मैडम ! नौ बज रहे हैं । शुक्र करो यहां स्नो फाल नहीं होती वर्ना . तुम्हारा चेहरा फ्रीज़ हो जाता । " वह एक आंख बन्द करके मज़े से बोला और उसके सामने अपने हाथ पर बन्धी चौड़ी पट्टी वाली सिल्वर घड़ी लहराई । " मानो बिल्ली कहां है ? " बड़ी देर बाद उसे अरीबा का ख्याल आया तो पूछ बैठा । " सो रही होगी । वैसे भी आज छुट्टी का दिन है आराम का । अब प्लीज तुम उसे मृत तंग करने पहुंच जाना । " अनीका ने उसके इरादे भांप लिए । कुछ जता कर उसे मना करने लगी । उसकी रग रग को जानने का दावा रखने वाली समझ गई कि वह अन्दर जाकर इस सदी में भी अरीवा पर पानी का छिड़काव करेगा । अरीया पूरे घर में उसको मारने के लिए उसके पीछे पीछे दौड़ेगी और समीन उन दोनों की ऐसी शरारतों पर एक लम्बा लैक्चर देगी । ऐसे सीन उस घर के दरो दीवार को भी याद थे । " क्या यार ! इतवार है तो क्या तुम लोग सोते रहोगे ?

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