होटल में पीली ओरेन्ज सी रौशनी in story

Share:

                                होटल में पीली ओरेन्ज सी रौशनी


 होटल में पीली ओरेन्ज सी रौशनी फैली । हुई थी । म्यूज़िक की हल्की धुन माहौल को रोमान्टिक बना रही थी । बाहर के मुकाबले अन्दर का माहौल थोड़ा गर्म था । टेबिल्ज़ पर बैठे बेफिक्रे से लोगों की ठहर ठहर कर आती हंसी की आवाज़ सुकून भरी फ़ज़ा में लड़खड़ाहट पैदा करती थी । महसूस करते । हुए बातों में एक दीवार के पास वाली टेबिल पर आमने सामने बैठे वह दोनों भी माहौल की खूबसूरती को करते हुए लगे हुए थे । रूहा और इफरा का शानदार रिज़ल्ट



आने पर दोनों ने आज यहां ट्रीट देनी थी । मगर सिकन्दर और इफरा को कहीं और जाना पड़ गया था । पिछले महीने उन दोनों की मंगनी हो गई थी । दोनों बहुत खुश थे । उस वक्त भी मुर्तज़ा उन्हीं के बारे में कहा से बात कर रहा था । " दोनों इस मंगनी से बहुत खुश हैं । क्या यह पहले से एक दूसरे से इन्वाल्व थे ? " वह रूहा से पूछ रहा था । " हां इन्वाल्व तो काफी दिनों से हैं । " " चलो अच्छी बात है । फिर तो मुहब्बत का खूबसूरत अन्जाम तक पहुंच



 जाना ही अच्छा है । इन्सान मुतमइन और खुश रहता है । " उसकी बात पर रूहा ज़ोर से हंसी और काफी देर तक हंसती रही । फिर मुश्किल से हंसी रोक कर बोली- " यह किस ज़माने की बातें करते हो तुम ? अब तो रिश्ते जरूरत और फायदे की बुनियाद पर तय होते हैं । सिकन्दर और इफरा ने भी इस रिश्ते में फायदा सबसे पहले सामने रखा है । यह मुहब्बत वुहब्बत कौन करता है अब किसी से हालात बदल जाएं तो दिल भी बदल जाते हैं और रिश्ते भी । "


 वह मजाक उड़ा रही थी और मुर्तजा का चम्मच वाला हाथ मुंह तक जाते जाते रुक गया था । वह भी तो हालात बदलते सब कुछ भूल गया था । मुहब्बत रिश्ते भी । मुर्तजा के चेहरे पर साया सा लहरा गया । " क्या हुआ ? " मुर्तजा को एकदम ख़ामोश देख कर वह पूछने लगी । " कुछ नहीं । " उसने मुस्कुराने की कोशिश की और सर झुका कर खाने में खुद को बिजी जाहिर करने लगा । रूहा ने कन्धे उचकाए और खाने लगी ।


कुछ देर बाद रूहा का मोबाइल बजा । नम्बर देख कर उसने काट दिया और मुर्तज़ा से इधर उधर की बातें करने लगी । कुछ देर बाद फिर फोन बजा । उसने फिर काट दिया । मुर्तजा ने उससे नहीं पूछा कि किसकी काल है । उसकी रूहा से अच्छी दोस्ती थी मगर वह पर्सनल सवाल नहीं करता था । अगली बार रूहा का फोन नहीं बजा था बल्कि मेसेज टोन ने रूहा को हाथ में थमे मोबाइल पर मेसेज पढ़ने पर मजबूर कर दिया । मेसेज पढ़ कर उसके चेहरे पर उलझन फैल गई । वह परीशान सी इधर उधर देखने लगी । " ऐनी प्राब्लम ? " मुर्तजा ने खाने से हाथ रोक कर पूछा । " नो नो सब ठीक है । " वह मुस्कुराते हुए बोली- " मैंज़रा याश रूम से फ्रेश होकर आती हूं । " वह



 उठ कर उस तरफ चल पड़ी जहां वाश रूम बने थे । मुर्तजा कुर्सी से टेक लगाए रूहा के अल्फाज़ याद करने लगा- " मुहब्बत वुहब्बत कौन करता है किसी से । " वालों में हाथ चलाते । हुए उसने गहरी सांस ली । वह कितनी आसानी से इतनी सस्त बातें कह गया था । हालांकि वह खुद भी जानता था कि उसे कामयाब देख कर मरियम से ज्यादा कोई खुश नहीं था । उसे कामयाब देख कर मरियम से ज्यादा फुत्र किसी को नहीं था । फिर कैसे उसने यह कह दिया कि वह उससे जलती है , कैसे ? उसे बहुत अफ़सोस हो रहा था । मोबाइल पर आने वाली काल ने उसका ध्यान खींचा । सिकन्दर की काल थी । वह उसे अपने एक दोस्त के घर बुला रहा था जिससे एक प्रोजेक्ट की कुछ जरूरी बातें



मोबाइल जेब में रख कर उसने वालेट निकाल कर बिल अदा कर दिया और नज़रें इधर उधर घुमायीं । रूहा अभी तक नहीं आई थी । वह उठा और उस तरफ चल पड़ा जहां वह गई थी । वाश रूम का दरवाज़ा खुला था । वहां कोई न था । उधर सामने की गेलरी में अच्छी तरह देख कर वह पलटने लगा तो हल्की हल्की बातों की आवाज़ पर उसने ज़रा पीछे हट कर उस तरफ़ देखा जहां से आवाजें आ रही थीं । वह दाएं तरफ पतली सी एक और गेलरी थी जो शायद होटल के किचन से जा मिलती थी । उसने आगे होकर झांका तो हैरान सा रह गया । हा रुख मोड़े खड़ी थी और उसके पास एक स्मार्ट सा लड़का खड़ा कुछ कह रहा था । उनमें किसी बात पर बहस हो रही थी । मुर्तज़ा के देखते ही देखते उस लड़के ने ख्हा का बाजू खींच कर अपनी तरफुकिया और आगे जो हुआ इससे ज्यादा देखना मुर्तजा जैसे शख़्स के लिए मुश्किल हो गया । इतनी गिरी हरकत करते देख कर मुर्तज़ा का चेहरा लाल हो गया । वह तेजी से मुड़ा और टेबिल की तरफ जाने के बजाए बाहर की तरफ बढ़ गया । रूहा को जरूरी काम अचानक आ जाने पर अपने जाने का मेसेज करते वह गेट पर पहुंचा ही था कि रूहा का मेसेज आ गया । उसने अपना इन्तिज़ार करने को कहा । वह होन्ट भींचे खड़ा रहा । कुछ ही मिनट बाद वह उसे आती दिखाई दी । नार्मल अन्दाज़ में बालों में हाथ चलाती वह उसे पार्किंग की तरफ आने का इशारा करके उस तरफ बढ़ गई ।


" इतनी जल्दी क्या थी कि मेरे आने का इन्तिजार भी न किया ? " उसके पास पहुंचते ही वह बोली । " सिकन्दर की काल आ रही थी । बुला रहा है , शायद जरूरी काम है । इसलिए में चला आया । " कोशिश करके वह उसकी तरफ़ देखने से बच रहा था । दांत पर दांत जमाए वह बहुत मुश्किल से खुद पर कन्ट्रोल किए हुए था । " हां तो क्या हुआ । मैं वाश रूम तक ही गई थी । वहां उम्र बिताने तो नहीं गई । थी । " उसके हल्के सीरियस अन्दाज़ में कहने पर मुर्तज़ा की बर्दाश्त का बन्धन टूट गया " मगर तुम वाश रूम में तो नहीं थीं । " वह उसकी बात को लापरवाई से नज़र अन्दाज़ करती गाड़ी में बैठ कर उसे स्टार्ट करने लगी । मुर्तजा होन्ट भींचे उसके साथ वाली सीट पर बैठ गया । ऐसी गिरी हुई हरकत करके आने के बाद भी वह सुकून से बैठी थी । शर्मिन्दगी उसके चेहरे पर बिल्कुल भी न थी । " कौन था वह ? " सामने देखते मुर्तजा ने बड़ी रसान से पूछा । हुए " कौन ? " रूहा के अनजान बनने का ड्रामा उसे और ज्यादा गुस्सा दिला रहा था- " वही जिसके साथ तुम वहां खड़ी थीं । " " ओह ! " कहा को समझने में एक लम्हा लगा था- " वह मेरा ब्वाय फ्रेन्ड था । नाराज़ थी में उससे बहुत दिनों से । यहां में नज़र आईतो बात करना चाहता था मुझसे । मनाना चाहता था इसलिए में . " तुम लोग बात कर रहे थे या बेहयाई • फैला रहे थे ? " मुर्तजा की आवाज़ अपने आप


ऊंची हो गई । उसे बहुत गुस्सा आ रहा था । वह रूहा को अच्छी दोस्त मानने लगा था । तो वह हक़ रखता था कि कुछ ग़लत करने पर उससे पूछ सकता । उसे रोक सकता और यही वह कर रहा था । " व्हाट रविश यह ? तुम्हें क्या प्राब्लम है ? मैं अपने हर काम के लिए आज़ाद हूं । आज तक किसी ने मुझसे इस तरह की जवाब तलबी नहीं की तो तुम कौन होते हो ? " वह भी उखड़े लहजे में चीखी । " किसी ने जवाब तलबी की होती तो तुम इस तरह अपने नफ्स ( वासना ) की गुलाम न होतीं । " " फार गाड सेक मुर्तज़ा ! अपनी यह थर्ड क्लास मेन्टेल्टी छोड़ दो । चलता है यह सब । " " मैं थर्ड क्लास मेन्टेल्टी रखता हूं तो भी कोई बुराई नहीं । इज्जत और हया इन्सान के अन्दर होनी चाहिए । चाहे वह किसी भी क्लास से तअल्लुक रखता हो । " " कर दी ना वही घटिया बात तुम जैसे लोग चाहे कितना ही हम जैसों में घुसने की कोशिश कर लें , कितना ही कान्टों चमचों से खाना सीख लें , रहेंगे वही उजड़ और गंवार सौ साल पुरानी जहनियत के मालिक जो कुएं का मेन्दक बन कर ही ज़िन्दगी गुज़ारने में खुशी महसूस करते हैं । " मुर्तज़ा को लगा उसने उसी के अल्फाज़ उसके मुंह पर दे मारे हों । जो कभी उसने मरियम को कह कर तकलीफ़ की खाई में धकेला था । बहस के दौरान रूहा गाड़ी सड़क के किनारे रोक चुकी थी । मुर्तजा ने एक झटके से अपनी तरफ का दरवाजा खोला और रूहा ने भी उसे



रोकने की कोशिश नहीं की थी । मुर्तज़ा का जहन रौशन ख्याली के इस पहलू को कुबूल नहीं कर पा रहा था । वह आज ग़लत साबित हो गया था । उसे आज अन्दाज़ा हुआ था कि जिस क्लास के तौर तरीके अपनाने की कोशिश में वह अपने रिश्तों को बहुत पीछे छोड़ आया था वह तो उसकी फितरत ( नेचर ) से मेल ही नहीं खाते थे । वह तो हमेशा से मोहल्ला रसूल नगर में रहने वाले पुराने मगर पाक साफ सोच रखने वाले लोगों का ही हिस्सा था । उसकी तरबियत उसे सही ग़लत और अच्छे बुरे में फर्क दिखाते हुए की गई थी । के मरियम के साथ तन्हाई के ऐसे सैकड़ों मौके मिले थे मगर कभी उसे कोई ग़लत सोच तक न आई थी । उसे आज वह टूट कर याद आई थी । मरियम ने उसे हमेशा आगे बढ़ने के लिए हिम्मत बन्धाई थी । फिर जब वह आगे बढ़ आया तो अपने पीछे रह जाने वाली मरियम को कैसे भूल गया । कैसे ? कैसे उसने इन रंगीनियों में खुद को गुम करके मरियम के बुजूद ( अस्तित्व ) को भुला दिया ? वह रंगीनियां जिनकी उम्र सिर्फ लम्हाती है । जिनकी चकाचौन्द सिर्फ कुछ देर की है । इन जैसी गिरी हुई चीज़ों के लिए उसने मरियम के अनमोल वुजूद को कैसे नज़र अन्दाज़ कर दिया । वही तो थी उसकी ख़्वाहिशों के पूरी होने के लिए हर नमाज़ में दुआ करने वाली । उसकी कामयाबी के लिए मन्नतें मांगने वाली । फिर उसने कैसे रुख बदल लिया मरियम से ? आसमान पर उड़ान भरने वाला परिन्दा थक कर अब ज़मीन पर उतर रहा था ।








No comments