मौसम बदलना शुरू in story

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                                                        मौसम बदलना शुरू  


 मौसम बदलना शुरू हो गया था । गर्मी की लम्बी दोपहरें सुकड़ कर छोटी होती जा रही थीं । हवा में हल्की हल्की ठन्डक उतर आई थी । मोहल्ला रसूल नगर के सहन और छतों पर सोते लोग अब कमरों में सोने लगे थे । रात को ठन्ह होती लेकिन दिन खुश गवार रहता । मरियम बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर फ्री हुई और मोबाइल उठा कर छत पर आ गई । हवा में दिल को सुकून देने वाली थपकियां थीं । चारपाई पर बैठ कर उसने मोबाइल , सामने रख लिया । यह भी उसके रूटीन का हिस्सा बनता जा रहा था । वह अब मोबाइल को लापरवाई से इधर उधर नहीं छोड़ती थी । वह मुर्तजा की काल का शिद्दत से इन्तिज़ार कर रही थी । वह जानती थी जल्दी या देर से उसे अपनी ग़लती का एहसास होगा । अपनी ग़लती पर पछतावा होगा और वह उसे फोन करेगा । ज़िन्दगी में पहली बार मरियम रूठी थी और वह मुर्तजा की तरफ से मनाए जाने के इन्तिज़ार में थी । शाम की ठन्डी हवा ने चोटी से निकले बालों को चेहरे पर फैला दिया था जिन्हें वह हाथ से समेट कर कानों के पीछे उड़सती जा रही थी । एकदम उसे गली में अपने घरके दरवाजे के आगे रिक्शा रुकने की आवाज़ आई । उसने मुन्डेर पर से झांका । " अब्बा ! " वह चीखी और तेज़ी से नीचे की तरफ लपकी नज़र अंकल रिक्शे वाले


की मदद से रहीम को उठाए अन्दर ला रहे थे । उनके सर पर पट्टी बन्धी थी । उन्हें अन्दर चारपाई पर लिटा कर रिक्शे वाला चला गया । " अब्बा अब्बा ! क्या हुआ अब्बा को ? नज़ीर अंकल ! क्या हुआ है ? " नज़ीर अहमद भी कपड़े की उसी दुकान पर नौकर थे जहां रहीम काम करते थे । दो एक बार वह उनके घर भी आए थे इसलिए मरियम जानती थी । " बेटा ! घबराने की कोई बात नहीं । आप रोना बन्द करें । " वह उसे एक्सीडेन्ट के बारे में बताने लगे जो बेतरह रोते हुए रहीम के सरहाने बैठी थी । के लिए इस्तेमाल होने वाली दुकान मोटर साइकिल पर माल लेकर आने के लिए रहीम मार्किट गए थे । और सामान मोटर साइकिल की पिछली सीट पर बन्धवा कर वापस आ रहे थे जब भरी सड़क पर ओवर लोड हो जाने वाली बाइक डगमगा गई और साथ वाली लेन से आती गाड़ी से टकरा कर दूर जा गिरी । मरियम ने बेहोश होकर आंखें बन्द करके लेटे रहीम को देखा । माथे पर पट्टी के अलावा दायां बाजू पट्टियों में जकड़ा हुआ था और टांग फ्रेक्चर हो चुकी थी । वह परीशान कैसे न होती । " तुमको हिम्मत से काम लेना होगा बेटा ! अल्लाह का शुक्र है उसने जान बचा ली में आता रहूंगा । यह दवाई रखें और खाने के बाद रेगुलरदें । यह दर्द कम करेगी । डाक्टर ने उन्हें दो महीने चलने फिरने से मना किया है । टांग का प्रेक्चर ठीक होने में वक्त लगेगा । मगर खुद को अकेला मत समझना । किसी भी चीज़ की जरूरत हो


मुझे फोन कर लेना बेटा ! " उसे तसल्ली देकर वह चले गए । और रहीम को देख देख कर बिलकती मरियम सबीन का नम्बर मिलाने लगी । उसे बता कर उसने मुर्तजा को फोन किया । काल फिर नहीं मिली । उसने घर पर फोन किया और ताई रखशिन्दा के फोन उठाने पर अब्बा के एक्सीडेन्ट का बता कर थक कर मोबाइल रख दिया । उस कमज़ोरसी जान के लिए इतना बड़ा गम सहारना मुश्किल था । वह अपनों को आवाजें दे रही थी । सबीन के आने से बहुत हौसला मिला था । रहीम मुश्किल से हाथ को हिला पा रहे थे । और टांग तो एक इन्च भी सरकाते तो दर्द से कराहते । आस पड़ोस वाले भी उनका हाल पूछने आए थे । एक रोज ताई रखुशिन्दा भी भूले से आ गई थीं और ऊपरी दिल से देख कर कुछ देर बैठ कर चली गई । थीं । मरियम का ख्याल था कि मुर्तजा चाहे कितना भी नाराज़ हो खून का रिश्ता तो है । अब तो वह चक्कर लगाएगा ही । लेकिन वह गलत साबित हुई । कई दिन गुज़रने के बाद भी न तो मुर्तज़ा आया था न करीम ने भाई की हालत पूछी थी । अब मरियम ने इन्तिज़ार करना भी छोड़ दिया था । यह समझ गई थी कि दौलत के सामने रिश्ते अपनी अहमियत खोने लगते हैं । और मुर्तजा जैसे शख़्स के बारे में यह सोचना बहुत तकलीफ़ वाला काम था क्योंकि उससे मरियम का सिर्फ ख़ून का रिश्ता न था , दिल का भी था । सबीन कुछ दिन रह कर वापस चली गई । सुसराल के बखेड़ों की वजह से वह

ज़्यादा दिन रुक न सकती थी । रहीम की खिदमत में उसने कोई कमी न छोड़ी मगर अब उसे और ही फ़िक्रें सताने लगी थीं । रहीम तो अब कुछ महीने के लिए बिस्तर के हो रहे थे और डाक्टर्ज़ का कहना था कि इसके बाद भी इन्हें पहले की तरह चलने फिरने में वक्त लगेगा । मरियम ने कुछ पैसे इक्टठा कर रखे थे । उससे उनका इलाज चल रहा था और अब टयूशन्ज़ वाले पैसों में से हज़ार का आखिरी नोट मुटठी में थामे दरवाज़े में खड़ी थी कि किसी जानने वाले को देकर स्टोर से अब्बा के लिए दवाएं मंगवा सके । दवाएं बहुत महंगी थीं और घर का खर्च अलग । हर महीने आने वाली पानी व गैस , बिजली के बिल भी अदा करने थे । किसी के सामने हाथ वह नहीं फैला सकती थी । उसने सोचा कि उसे कोई नौकरी कर लेनी चाहिए । इससे पहले कि वह बिल्कुल खाली हाथ रह जाए । उसे कुछ तो करना था । अख़बार में देख देख कर वह कुछ जगहो पर इन्टरव्यू भी दे आई थी और अब वहां से इन्टरव्यू काल के इन्तिज़ार में थी ।






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