शमीना ने बेहद हैरानी के साथ गुलबीबी in storiestostories

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शमीना ने बेहद हैरानी के साथ गुलबीबी के साथ शाह खानम और माहगुल को आते देखा था । शाह खानम उस से बड़ी मुहब्बत से मिली । उस के माथे पर बोसा दिया । माहगुल भी उस से मुहब्बत से मिली । उस की निगाहों में पसन्दीदगी की झलक थी । शमीना सर्त हैरान परीशान हो रही थी । वह उठ कर अपने कमरे में आ गई थी । ' वह लोग क्यों आये हैं ? क्या अजमल खान ने भेजा है ? वह अब भी आस लगाए हुए उम्मीदों का दामन थामे बैठा है । अब बहुत देर हो गई है अजमत खान बहुत देर हो गई है । ' एक सिसकारी उस के लबों से आज़ाद हो गई । फिर शोर करती लहरे मचल मचल कर दिल के साहिल पर सर पटखने लगीं । उस के बुजूद में दुख भर गया । ' हमारे रास्ते जुदा है अजमल खान तकदीर लिखने वाले ने वह कुछ नहीं लिखा जो तुम या में चाहते रहे हैं । ' उस ने जख्मी जहन से सोचा और फिर एक ख्याल उस के जहन में आया । वह फोन की तरफ बढ़ी । वह इशारा से बात करना चाहती थी । उसे सब कुछ बता देना चाहती थी कि अब उन की कोशिश बेकार है । वह तो अब्बी के फैसले की भेंट चढ़ेगी । उन की ख्वाहिश पर सुलतान कमाल की ज़िन्दगी में शामिल हो जाएगी । ज़िन्दगी भर तड़पने और सिसकने के लिए । उस ने डायरी से सहरगुल का नम्बर ढून्ढ निकाला जो सहरगुल ने उसे दिया था । उसे गुलबीबी ने ही बताया था कि इशारा वहीं रुकी हुई है । एक इशारा ही तो थी उस की हमराज़ यकीनन वह उसे अपने गमों में शामिल कर सकेगी । शायद अपना दुख कह लेने से दिल का बोझ हल्का हो जाएगा । उस ने नम्बर मिलाया तो तीसरी वेल पर रिसीवर उठा लिया गया मगर दूसरी तरफ अजमल की आवाज सुन कर उस के बुजूद में बिजली की लहरें दौड़ने लगी । मगर यह उस सेकस कदर खफा था , सतनाराज था । आग भरे तीर वरमा कर फोन पटख दिया था । उसे छुरी फिरे मुर्गे की तरह तड़पने के लिए छोड़ दिया । था । उस का दिल तो पहले ही छलनी था । उस ने लफ्ज़ों के कई तीर उस के जन्मी दिल में घुसा दिये । उस ने बेजान हाथों से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया । तभी बेल बज उठी । अजमल के जुमलों ने उस के जिस्म से जैसे रूह सीन्च ली थी । उस को अन्दर बाहर से जख्मी कर दिया था । उस ने आसू पीते हुए रिसीवर उठा लिया । दूसरी तरफ इशारा थी जिस की आवाज़ शमीना के जब्त को बिखेर गई " इशारा ! " वह बिलक उठी और कितनी ही देर रोती रही । यह उस की हमदर्द थी । उस की हमराज । उस की बेहतरीन दोस्त थी । उस ने अपना ग़म उस के सामने खोल दिया । " मर्द कभी औरत की मजबूरियों को नहीं समझ सकते । अजमल खान भी मुझे ही कुसूरवार ठहरा रहे हैं । " उस ने टूटे सहने में कहा तो इशारा का जिगर छलनी हो गया । वह उसे बेजान लफ्ज़ों में तसस्तिया देती रही । देती रही । खुद को संभालते हुए उसे संभाता मगर अब शमीना की तसल्ली न हुई । उस की हौसलों की चट्टानें चटख ●कोई लफज भी उस के दर्द का

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