वह सब शाम को शमीना के बंगले पर पहुंचे थे in storiestostories

Share:
वह सब शाम को शमीना के बंगले पर पहुंचे थे । इशारा का दिल तो मारे खुशी के बल्लियों उछल रहा था । उस का बस चलता तो वह ड्राइंग रूम से उठ कर दौड़ कर शमीना के पास जा कर उसे यह खबर सुना आती । भाभी मुस्कुरा मुस्कुरा कर उन सब की खातिर कर रही थीं । फिर शाह खानम के कहने पर शमीना के कमरे में आई । " चलो बन्नो ' अपने ससुराल वालों का दीदार कर लो । और उन्हें अपने चान्द से चेहरे का दीदार कराओ । " भाभी " " उस ने तड़प कर भाभी को जख्मी नजरों से देखा फिर दर्द से लब काटने लगी । उसे लगा कि उस की सांसें जवाब दे रही हैं । सुबह से खुद को संभालने में लगी थी । बस इसी लम्हे बिखर रही थी । भाभी ने उसे जबरदस्ती कामदार सूट पहनाया था और उस के ' न न करने के बाबुजूद हल्का मेकअप कर दिया था । और फिर उसे जबरदस्ती सीन्चती हुई ड्राइंग रूम तक ले आई । " ओह चश्मे बदूर " सहरगुल की खनकती आवाज उभरी और शमीना का उठा हुआ सर उसी ऐंगल पर रह गया । यहां तो सभी जाने पहचाने चेहरे थे । लबो पर जानदार और जीत की मुस्कुराहटें लिए । वह किसी बुत की तरह खड़ी रही तो इशारा अपनी जगह से उठी और उसे शाह खानम के करीब बिठा दिया और शाह खानम ने उस के खूबसूरत सरापे पर मुख्यत भरी निगाह डाल कर उस की उंगली में डायमन्ड की अंगूठी डाल दी । " मुबारक हो भाभी ! " इशारा झुक कर बोली तो वह जैसे होश में आ गई । उसने बेइख़्तियार सर उठा कर भाभी की तरफ देखा जिन के चेहरे पर दिलफरेब मुस्कुराहट थी और आखें उसे उस की जीत की । मुबारकबाद दे रही थीं । " यक़ीन जानो , यह ड्रामा तुम्हारी भाभी का बनाया हुआ है । " इशारा ने सरगोशी की और वह जो सांस रोके बैठी . थी , इतनी बड़ी खुशी पर उस का दिल जोर जोर से धड़कने लगा । शाह खानम , गुलबीबी और अम्मी बातों में मसरूफ हो गयी थीं । वह आहिस्तगी से उठ कर इशारा और स सहरगुत के पास आ बैठी । इस बेतहाशा खुशी में उस का चेहरा देखने के काबिल था । उस ने खुशी से इशारा का हाथ थाम कर दबाया " यह सब कुछ तुम लोगों ने मुझ से क्यों छुपाया ? " उस की पलकें नम हो गयी । इशारा ने मुहब्बत भरी नजरों से उसे देखा " यह तुम्हारी भाभी की कर्म नवाज़ियां थी जो तुम पर हुयी । " उस ने भाभी की तरफ इशारा किया तो भाभी ने करीब आ कर उस के सामने हाथ जोड़ दिये " बन्दी इस जुर्म की मुआफी मांग रही है .... वैसे ईमान से , मजा बड़ा आया । तुम्हारी सूरत देख कर एक बार दिल चाहा कि बता ही दूं । मगर फिर । " वह हंसने लगी । शमीना को तो इतनी बड़ी खुशी संभालना मुश्किल हो रही थी । उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस वक्ते क्या करे ? ऊन्चे ऊन्चे कहकहे लगाए या आरसे बन्द कर के बेखुद सी पड़ी रहे ? उस से अपना लपकता घड़कता दिल सभल ने रहा था । तब वह आहिस्तगी से उठी और कमरे से निकल गई । अपने कमरे में आ कर वह दीवार का सहारा लेकर कुछ लम्हे गहरे गहरे सांस लेती रही । अचानक फोन की घन्टी चीस उठी । तो उस ने आंखें खोली । फिर चलती हुई । फोन के करीब आई । न जाने क्यों उसे यकीन था कि दूसरी तरफ अजमल होगा । उस ने कांपते हाथों से रिलीवर थाम लिया । " हैलो शमीना " अजमल की बेताब आवाज़ उस के कानों पर खुशबू बिखेर गई " मैं तो इन्तिज़ार ही करता रहा कि तुम फोन करोगी । मगर खैर , मुबारक हो । " उस की आवाज़ जज्बात से भारी हो गई । " मुझे यकीन नहीं आ रहा अजमल ! " उस के लब कंपकपाये । म " मैं सामने आऊंगा तो यकीन आ जाएगा । " वह हंसा- " आ जाऊ क्या ? " " न नहीं । " यह घबरा गई- " अभी तो सव बैठे हुये है । " " अच्छा जब चले जायें तो बता देता । " यह उस की घबराहट से भरपूर अन्दाज में लुत्फ अन्दोज हो रहा था और यह बुरी तरह झेंप गई । " आप ने मुझ से क्यों छुपाया ? " यह शिकवेकरनेलगी- " मैक्सि अजाब से लम्हा लम्हा गुजरी हूं , आप को शायद अन्दाजा नहीं ।

No comments