सुसराल में से बहुत से हमदर्दी in sort story

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                                                              सुसराल में से बहुत से हमदर्दी 

 उन्होंने यह बात हंसी में उड़ा दी थी , लेकिन जब मेरे मैके और सुसराल में से बहुत से हमदर्दी ने खावर को समझाया तो बात उनकी अक्ल शरीफ में आ गई । मेरे तअल्लुफ़ात का नेटवर्क तेज़ी से बढ़ रहा था और अब मुझे इस नेटवर्क को अपने बिज़नेस के लिए इस्तेमाल में लाना था । बस में ने अल्लाह का नाम लेकर ' शादी दफ्तर ' खोल लिया । इतने बरसों पढ़ाई से जुड़े रहने के बाद मुझे लोगों से अच्छी तरह डीलिंग करना आ गया था और



 तालीम ( शिक्षा ) तो वैसे भी शवसीयत में निखार पैदा करती है । लोग मुझ से मिलकर खुशी खुशी जाते थे । इस कारोबार की कामयाबी के लिए एतमाद पहली शर्त है और मुझे पहले दिन से ही अपने क्लाइन्टस का एतमाद हासिल रहा । बेशक में से यह कारोबार पैसा कमाने की नीयत से ही शुरू किया था । लेकिन सच्चाई यह है कि सिर्फ पैसा कमाना ही मेरा मकसद नहीं रहा । अगर किसी रिश्ते पर मेरा दिल मुतमइन न होता तो मैं उसे मन्जूर न करती चाहे पैसा कितना भी मिलता । मैं अपने करवाए रिश्तों के लिए दुआ भी करती थी । कि ख़ुदा उन्हें कामयाव करे । मेरी जात से किसी को दुख न पहुंचे । पैसों से ज्यादा मुझे रिश्ते की कामयाबी से खुशी होती थी । " 



 मैरिज ब्योरो ' के कयाम ( स्थापना ) के सिर्फ छह महीने बाद ही में ने कालिज जाब छोड़ दी थी । हर गुजरते दिन के साथ मेरा काम मजबूत होता जा रहा था । अब तो खुम्वर ने भी मेरी मसरूफियत से समझौता कर लिया था । दाल सब्जी पर तो सैर अब भी समझौता न था , मगर अब उन्होंने खुद अच्छी खामी कुकिंग सीख ली थी ।

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