थाली में दाल चुन in story

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                                                           थाली में दाल चुन 


 वह थाली में दाल चुन रही थी । अब्बा के लिए खिचड़ी बनानी थी । सुबह मिसेज़ सिद्दीकी के शौहर की काल पर वह एक जगह इन्टरव्यू देने गई थी । अब्बा के पास पड़ोस के तेरह साला फ़र्रुख को छोड़ कर वह जल्दी में घर से निकली थी । उस वक्त जाब मिलना उसकी सबसे बड़ी ज़रूरत थी । आफिस ढून्डने में उसे मुश्किल नहीं हुई थी लेकिन यहां से भी उसे कोई पाजिटिव रिस्पांस नहीं मिला था । वह नाउम्मीद सी लौटी थी ।

बाकी सिद्दीकी यूं भी होने का पता देते हैं अपनी ज़न्ज़ीर हिला देते हैं . पहले हर बात पे हम सो


चते थे अब फक्त हाथ उठा देते हैं . काफिला आज फहां ठहरेगा क्या ख़बर आवला पा देते हैं । बअज औकात हवा के झोंके लौ चराग़ों की बढ़ा देते हैं । दिल में जब बात नहीं रह सकती किसी पत्थर को सुना देते हैं . एक दीवार उठाने के लिए एक दीवार गिरा देते हैं । सुबह ही मोतिया के पौदे पर फूल खिले थे । सहन महकने लगा था । उसे



 अब मोतिया के सफेद फूल खुश किस्मती की निशानी न लगा करते । उसकी किस्मत सो गई थी । आसमान सुबह से बादलों से ढका था । बादलों ने पूरे शहर को ढक रखा था । इन्टरव्यू से वापसी पर बारिश शुरू हो चुकी थी लेकिन बहुत हल्की फुवार पड़ रही थी । घर आकर उसने सहन में तार पर फैले कपड़े जल्दी जल्दी समेटे और अब्बा के लिए खिचड़ी बनाने का सोच कर दाल मंगवा ली । यह अन्दर कमरे में सो रहे थे । रहीम के सर और बाजू के जख्म तो भर गए थे मगर




वह अब भी खुद से चलने फिरने के न हुए थे । एक्सीडेन्ट ने उनके घुटने के जोड़ को बहुत नुकसान पहुंचाया था । बड़े भाई ने उनका हालचाल पूछा न उनके चहीते भतीजे ने ही यह कोशिश की । वह तो ऐसा गया था कि पलट कर देखा तक न था । उन्हें अब अफ़सोस होता था कि सबीन के साथ साथ उन्होंने मरियम के लिए भी इक़रार क्यों नहीं कर दिया । अपने घर में मुतमइन तो होती । दौलत आने पर मिज़ाज और नज़रें तो सबसे पहले बदलती हैं बस यही अपनी सादगी में खुश फहमी में जीते रहे । मरियम ने दाल साफ़ करने के बाद चावल वाला शापर उठा कर उसमें से मुटठी भर कर चावल थाल में एक तरफ उन्डेले और साफ़ करने लगी । उदास उदास सी बिना काजल की



 आंखें थाली में पड़े कन्कर चुन रही थीं । दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई । उसने अनसुनी कर दी । अब दरवाज़े पर होती दस्तकों पर उसने चौंकना छोड़ दिया था । मोहल्ले से कोई होगा यह सोच कर भी वह उस सी बैठी रही । वह इतनी मायूस और परीशान थी कि झूटे मुंह भी किसी से मुस्कुरा कर नहीं मिल सकती थी । दस्तक वैसे ही होती रही । यह थाली एक तरफ रख कर उठी और थके कदमों से भीगते सहन में पड़ती फुवार से गुज़र कर बाहर की तरफ जाने लगी कि दस्तक देने वाला सब्र खोकर किवाड़ धकेल कर खुद ही अन्दर आ गया । मरिम जहां तक पहुंची थी वही जम गई । आने वाले ने सहन तक का रास्ता बहुत धीमी चाल से तय किया । सर झुकाए बोझल कुदमों से चलते हुए वह उसके पास रुका जो पत्थरवनी




अभी तक दरवाज़े को ही तक रही थी । ● कुछ लम्हे वह उसके पास खड़ा कुवार में भीगते फर्श को देखता रहा फिर चलत हुआ अन्दर कमरे की तरफ बढ़ गया और दरवाज़ा बन्द कर लिया । मरियम के बदन में तब भी कोई हरकत न हुई । बहुत महीन सी फुवार के बेहद नुन्हे नन्हे से कृतरे उसके बालों में अटकना शुरू हो गए थे । अन्दर यह जाने क्या बात कर रहा था उसे पता नहीं चला । थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और रहीम के कमजोर से जिस्म को अपने मजबूत बाजुजों में उठाए उसके सामने से गुज़र कर बाहर हो गया । मरियम के चेहरे पर बारिश के कृतरों और



 आंसुओं में फर्क करना मुश्किल हो गया । सब गुड मुड हो गया था । अगर आंसुओं का भी रंग होता तो यह बारिश भी मरियम जैसे लोगों का भरम न रख पाती । मुर्तजा आते हुए सिकन्दर की गाड़ी ले आया था । वह समझ गया था कि उसे तमाम उम्र पछतावे और बेसुकूनी में नहीं गुज़ारना तो उसे वही करना था जो उसके दिल की चाह थी । आठ कमरों के घर में इन दो लोगों की जगह बहुत आसानी से बन जाती । मरियम को आज नहीं तो कल उसे ले जाना ही था । तो फिर रहीम चचा को क्यों नहीं । अगर वह खुद इस कुएं से निकल आया था तो यह उसका फर्ज था कि वह उन्हें वहां तन्हा नछाड़ता बल्कि उनका हाथ थाम कर बन्दपार कर जाता जिसके बाद ज़िन्दगी की रोशन सुबह उनके इन्तिजार ● गाड़ी की पिछली सीट पर रहीम chacha



को लिटा कर वह फिर अन्दर आया । खामोश खड़ी मरियम की निगाहे अब मोतिया के खुशनुमा फूलों पर जमी थीं । उसके क़रीब आकर वह कुछ पल ख़ामोश रहा फिर इधर उधर देखते हुए बोला " चचा की दवाएं और कुछ जरूरी चीज़ेसमेट तो । बाकी बाद में आकर ले लेना । " अपने लहजे को नार्मल रखते हुए उसने कहा जो शायद उसने नहीं सुना था । वह यूं ही खड़ी रही । " मरियम ! मैं तुमसे कह रहा हूं । " उसने नर्मी से फिर अपनी बात दोहराई । मगर उसे यूं ही खड़ा देखकर वह खुद कमरे में चला गया । पलंग के पास रखी टेबिल पर से दवाई इक्टठी करने लगा । फिर निकल कर किचन में चला आया । कुछ टून्डने के बाद वापस कमरे में चला आया । मरियम उसके इधर उधर फिरने का कोई नोटिस नहीं ले रही थी । बस उसका दिल रो रहा था । एक शापर में दवाएं इक्टठी करके अन्दर का




 दरवाजा बन्द करके यह सहन में आ गया- " चलो । " उसका हाथ पकड़ कर वह चलने लगा तो मरियम ने एक झटके से अपना हाथ फेर कर खड़ी हो गई । और छुड़ाया बारिश की फुवार अब उसके बालों और पीठ पर ओस की तरह गिरने लगी । इतने दिनों के बाद अचानक उसे सामने देख कर उस पर जमी नाराजगी की बर्फ पिघल रही थी मगर वह जाहिर नहीं करना चाहती थी । मुर्तजा ने गहरी सांस भरी और दवा वाला शापर तख्त पर रख कर उसके पास आ गया । उसे मनाना नहीं आता था । यह उससे कभी नाराज़ नहीं हुई थी । अब नाराज़



प्रदीप साहिल प्रेरणा के चान्द - सूरज बुझ गए हो गई अन्धी दिशाएं ले गई हर एक दीपक साथ अपने **** सरफिरी - पागल हवाएं प्रेरणा के चान्द सूरज बुझ गए ... कुछ सितारे अब भी हैं बाकी मेरे अशा पर जो मुझे बांधे हुए हैं जो मेरे दुखे हुए सर के लिए , कान्धे हुए हैं जो उजालों के तसब्बुर को महज़ इक ख़्वाब होने से बचा कर झिलमिला कर टिमटिमा कर के कह रहे हैं हौसला रख , हौसला रख , हौसला रख .. थी तो उसे रूठी हुई मरियम को मनाने का ढंग नहीं आ रहा था । " यार ! खुद ही मान जाओ । मुझे मनाना नहीं आता यह तो तुम जानती हो । "



 बड़े भोन्डे अन्दाज़ में कह कर वह फिर इधर उधर देखने लगा जैसे कोई रास्ता ढून्ड रहा हो मरियम की नाराजगी दूर करने का । बारिश ने अब दोनों को भिगो डाला था । हल्की फुवार लगातार पड़ने से अब मुर्तज़ा की शर्ट भीगने लगी थी । म " एक बार गुस्से में कुछ कह दिया तो इससे हकीकृत बदल तो नहीं गई । मैं तो अब भी वही मुर्तजा हूं मरियम का मुर्तजा । "

मरियम ने पहली बार नज़र उठा कर डायरेक्ट उसके चेहरे की तरफ देखा- " में तो तुम्हारी कामयाबियों से जलन करती हूं , भूल गए ? " धीमे मगर तकलीफ़से भरे लहजे में उसने सवाल किया । " नहीं , अगर ऐसा होता तो आज में नाकाम तुम्हारे पास खड़ा होता । " उसने फिर मरियम की कलाई पकड़ कर ऊपर की । " किसलिए आए हो तुम ? मैंने तो तसव्वुर ( कलप्ना ) करना भी छोड़ दिया था कि तुम कभी इस घर में कदम भी रखोगे । " वह बेहद



 नाराज़ थी । " अगर ऐसा होता तो तुम्हारे मोतिया पर फूल खिलना बन्द हो चुके होते । " वह मरियम की उन फूलों की अच्छी किस्मत की निशानी समझने वाली बात जानता था । मरियम खामोश हो गई । उसने उस शख्स से रूठने का सलीका भी नहीं आया था । वह जब तक नज़रों से ओझल था • मरियम उससे नाराज़ थी मगर उसे सामने देख कर उसकी नाराजगी हवा में उड़ती जा रही थी । " जानती हो मरियम ! तुमने ज़िन्दगी में कोई ढंग की


 बात नहीं की सिवाए एक के । " वह अब उसे हंसाने की कोशिश करने चला था । मरियम ने नहीं पूछा कि वह किस बात के बारे में कह रहा है । " तुमने कहा था ना कि सूरज , चान्द सितारे , बारिश , हवा यह सब हर आम व ख़ास के लिए एक जैसे हैं तो तुमने सही कहा था । देखो इस सहन में हम दोनों ही इस बारिश में भीग रहे हैं हालांकि मुझ जैसे रईस में और तुम


 में बहुत फर्क है । " हंसाने की कोशिश बेकार गई थी । 






यूं ही होन्ट भींचे खड़ी रही । • मुर्तजा सीरियस हो गया । उसे वाकई मनाना नहीं आता था सही कहती " तुम थी मरियम ! दालत के साथ साथ मुहब्बत भी ज़रूरी है । दौलत के बगैर तो ज़िन्दगी । • गुज़र सकती है लेकिन मुहब्बत के बिना । • जिन्दगी अधूरी है । मैं दौलत पाकर भटक गया था लेकिन अब जान गया हूं अपनों के बिना कोई भी खुशी मुकम्मल नहीं हो सकती । अल्लाह ने दिया था इसलिए कि में अपने साथ साथ अपनों को भी इस बन्द गली से निकाल ले जाऊं । मुझसे ग़लती हुई है मैं मानता हू लेकिन मरियम ! तुमने यह नहीं सुना कि सुबह का भूला शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते ? " वह शुक कर उससे पूछने लगा । " कहते हैं । " मुंह फुलाए फुलाए ही वह बोली तो मुर्तजा हंस पड़ा फिर राजदाराना अन्दाज़ में उससे बोला- " चलो कहते होंगे । तुम्हें एक राज़ की बात बताऊं ? किसी को बताना मत पता है एक चीज़ ऐसी है जो सिर्फ मेरे पास है । किसी रईस , बादशाह किसी को भी हासिल नहीं । बताऊं क्या ? " वह मुस्कुराहट होन्टों में दबाए उससे पूछ रहा था । और मरियम जवाब जानने के बावजूद शौक से उसकी सूरत तकने लगी । " मरियम " हाथ में • उसके वालों की भीगी लटें कान के पीछे उड़ते हुए वह प्यार से बोला तो मरियम हंस पड़ी और मुर्तजा अपने मज़बूत उसका हाथ थाम घर का दरवाजा पार कर गया ।


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