दुख का अन्दाज़ा in story

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                                                                    दुख का अन्दाज़ा


 आपके दुख का अन्दाज़ा है मिसेज़ मु नईम ! लेकिन प्लीज़ आप हौसला रखिये । अल्लाह ने चाहा तो आपकी बच्ची का रिश्ता बहुत अच्छी जगह तय पाजाएगा । " मैं ने अपने सामने बैठी खातून ( महिला ) को नर्मी से समझाया था । उन्होंने निगाह उठाकर मुझे देखा और हां में गर्दन हिलाई । टिशू से आंखें पोंछीं लेकिन देखते ही देखते आंखें फिर से भर आई । में जानती थी कि वह अपने आपको कम्पोज करने की कोशिश कर रही हैं लेकिन



 जिन्दगी में कोई कोई लम्हा ऐसा आता है जब इन्सान का खुद पर से एतवार उठ जाता है और ऐसी मां जिसकी बेटी को बार बार रिजेक्ट किया जाए शायद उसका हौसला यक्त गुज़रने के साथ साथ खत्म होता जाता है । में मिसेज़ नईम की फीलिंगज़ को समझ रही थी । कुसूर वार न होते हुए भी शर्मिन्दगी महसूस कर रही थीं । लेकिन उन्हें तसल्ली देने के सिवा मेरे बस में कुछ न था । में मिसेज़ अमीना खावर शहर की जानी मानी मैच मेकर हूं ।


 पिछले पन्द्रह बरसों से ' मिलन मैरिज ब्योरो ' बहुत कामयाबी से चला रही हूं । हालांकि पेशे से में एक टीचर थी । फिर न जाने कैसे टीचर बिचोलिया बन गई । मुझे याद है में ने पहला रिश्ता अपनी एक स्टुडेन्ट का ही कराया था । में शहर के मशहूर गर्ल्स कालिज में उर्दू पढ़ाती थी । गुमाइला मेरी चहीती स्टुडेन्ट थी । बहुत प्यारी और नटखट मी मेरी जेठानी की बड़ी बहन अपने बेटे के रिश्ते की थी । एक दिन बातों सुनकर मेरे जहन में राम से sumaìla का



चेहरा आ गया । मैं ने हंसते हुए उन्हें बता दिया कि मेरी एक स्टुडेन्ट उनकी मनपसन्द बहू की कसौटी पर खरी उतरती है । वह यह सुनते ही मेरे सर हो गई कि मैं उन्हें उस लड़की से मिलवाऊं । मैं ने शुमाइला से उसके घर का नम्बर लेकर उसकी वालिदा से बात की और उनकी रज़ामन्दी पाकर में नीलोफर को उनके घर ले गई । और सारे मुआमले अच्छी तरह तय पा गए । बी.ए. ' के एग्ज़ाम से पहले शुमाइला का व्याह हो गया था । की वजह आज



 माशा अल्लाह वह तीन प्यारे प्यारे बच्चों की मां है और इतना अच्छा रिश्ता कराने पर मेरी शुक्रगुज़ार है । इसके बाद एक और रिश्ता मेरी कोशिश से तय पाया । मेरी छोटी बहन की सास अपने सबसे छोटे बेटे के लिए लड़की तलाश कर रही थीं । मैं उन्हें बेग साहब के घर ले गई । वेग साहब हमारे पड़ोसी थे । वरसों का साथ था । वह और उनकी बेगम बच्चीयों की शादी परीशान थे । अच्छी से बहुत तालीम वाली सुधड़ बच्चीयां खूबसूरत भी थी मगर



 घराना कुछ खुशहालन था । उनकी माली परीशानी देखकर दिल दुखता था । मेरी छोटी बहन शमा की सुसरात अच्छी थी । रुपए पैसे की कोई ज़्यादती न सही मगर दिल खुते हुए थे । यही वजह थी कि तीन बहुए बहुत प्यार से एक ही छत के नीचे रह रही थी और अब शमा की सास को चौथी और आखिरी बहू की तलाश थी । उन्होंने मुझसे जिक्र किया तो मैं ने उन्हें बेग साहब की फैमिली से मिलवा दिया । उन लोगों को रिश्ता इतना पसन्द आया कि झट मंमनी और पट व्याह वाली बात हो गई । फिर अल्लाह की मेहरबानी से बेग



साहब की मंझली बेटी का रिश्ता करवाने की नेकी भी मेरे हिस्से में आई । मेरी कुलीग इरफाना के बेटे से निदा का रिश्ता तय पाया । फिर बड़ी फुप्फो की पोती नग़मा ख़ावर मेरे शौहर के चचाज़ाद भाई की बहू बनी । यह रिश्ता भी मेरी कोशिश से तय हुआ था । मैं बीते बरसों पर नजर डालूं तो लगता है कि कुदरत मुझे इस काम के लिए चुन चुकी थी । अल्लाह की मेहरबानी से मेरे तय करवाए हुए रिश्ते निनयानवे परसैन्ट कामयाब सावित हुए थे । सभी को मुझ पर एतमाद हो चला था । चारों तरफ मेरी तारीफें होतीं तो मुझे अनजानी सी खुशी होती । यहां तक तो सब ठीक था लेकिन अब इस सोशल वर्क की वजह से मेरा घर मुतास्सिर ( प्रभावित ) होने लगा था । आधा दिन



 कालिज में गुज़ार कर मैं घर लोटती तो शाम को किसी न किसी के साथ कहीं न कहीं जाना पड़ता । और इस आने जाने के चक्कर में घर पर मेरा ध्यान कम होने लगा था । तीनों बेटे तो समझदार थे । मेरे पीछे अपना होम वर्क कर लेते फिर खेलकूद में वक्त गुज़ारते वर्ना टीवी में उलझे रहते । हां सावर जरूर नाक भी चढ़ाते । " हफ्ते में दूसरी बार दस्तरख्वान पर दाल सजी है । मंहगाई तो बाकुई आसमान को छूने लगी है । " वह मंहगाई के पर्दे में मेरी शिकायत कर रहे थे । " सोरी खावर आज फहमीदा के साथ कौसर बाजी के यहां गई थी अगर कुछ और पकाने लगती तो खाने को देर हो जाती । शाम के वक़्त तो में घर लौटी थी । इसलिए जल्दी जल्दी मूंग की दाल बना ली । आपको अच्छी नहीं लग रही तो अन्हा फ्राई फर हूं । " " जी मम्मा कर दें । " सावर के जवाब



देने से पहले ही तीनों बेटों ने खाने से हाथ khich  लिया । यह बाप बेटे बहुत चटोरे थे । दाल सब्ज़ी तो उनके गले से उतरती न थी । " अपनी अपनी प्लेटें साफ़ करें बेटा । " खावरने बच्चों को डान्टा । मैं उन्हें शुक्रगुज़ार नज़रों से देखकर रह गई । इस वक्त वहां से उठकर दुबारा किचन में घुसने की हिम्मत न थी । आमलेट बनाने जैसा मामूली काम भी इतनी चकन में बहुत बड़ा लग रहा था । " आज सत्र शुक्र करके दाल खाएं , कल आप की मम्मा हमारे लिए चिकन पुलाव बनाएंगी । शामी कबाब और मीठे में खीर दूधवाली । " खावर की अगली बात सुन कर मेरा निवाला गले में अटक गया । " कल तो मुझे जुवेदा आन्टी को आपके दोस्त खुर्शीद साहब के भाई के यहां ले जाना



 है । " मैं ने मरे मरे लहजे में अपनी कल की मसरूफियत बताई । ख़ावर मुझे अजीव नज़रों से घूरने लगे थे । " तुम बाकायदा शादी दफ्तर क्यों नहीं खोल लेतीं । " उन्होंने नाराजगी से मशवरा दिया जो उनसे पहले बहुत से लोग मुझे दे चुके थे । शुरू शुरू में तो में यह बात हंसी मजाक में टाल जाती , लेकिन आहिस्ता आहिस्ता में इस बारे में सोचने लगी । कालिज से सिर्फ चन्द हज़ार रुपए मिलते थे । ख़ावर की जांब अच्छी थी , लेकिन मंहगाई वाकई आसमान से बातें करती थी । इतने सालों की मेहनत के बाद भी हम अपना घर नहीं बना पाए थे । तंगी से बचने के लिए मैरिज ब्योरो वाली बात मेरे दिमाग पर दस्तक देने लगी । यह काम ऐसा था जिसमे दुआएं भी थी और पैसा भी । अब अस्त मसअलाखावर को राजी करने का था । 








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