मीटिंग डिस्कस in story

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                                                                   मीटिंग डिस्कस 



 सिकन्दर के साथ आने वाली मीटिंग डिस्कस करते हुए वह ए आर ग्रुप आफ् कम्पनीज़ की इमारत में दाखिल हो रहा था । • उन्हें रहमान साहब ने बुलाया था । इन्फ्रेंस गेट की तरफ से गुज़र कर वह अन्दर दाखिल होने लगा था जब कुछ फिट दूरी से स्कार्फ में लिपटी गुजरती हुई लड़की को देख कर चौंका । एक सेकिन्ड के भी दसवें हिस्से की इस झलक में उसे लगा वह मरियम है लेकिन मरियम यहां कहां से आ गई । वह उलझता हुआ मुड़ा और देखने लगा । लड़की अब इन्फ्रेंस गेट से बाहर जा रही थी । सिकन्दर मेनेजर से ज़रूरी पेपर्ज निकलवा रहा था । खामोश



 खड़े मुर्तज़ा में हरकत हुई । वह बाहर की तरफ बढ़ा । उसका दिल गवाही दे रहा था वह मरियम ही थी लेकिन जब तक वह दरवाज़े तक पहुंचा लड़की सड़क पार करके सामने आती येन में सवार हो गई थी । वह उलझा हुआ सा वापस पलट आया । अब्दुर्रहमान हमदानी हमेशा की तरह मुर्तज़ा से जोशीले अन्दाज़ में मिले थे । मुर्तजा का ज़हन लगातार उसी तरफ लगा हुआ था । झिझकते हुए उसने रहमान से कुछ देर पहले उनके आफिस से निकलती लड़की के बारे में पूछा । " वह लड़की , हां मरियम नाम है उसका । एक जानने वाले के जरीये से जाब के लिए आई थी । वह बता रहे थे कि लड़की ज़रूरत मन्द है । फ़ादर का एक्सीडेन्ट हुआ है इसलिए उसे अर्जेन्ट जाब चाहिए । लेकिन मेरे पास तो सिर्फ सेक्रेट्री की पोस्ट खाली है । और उसका तजरिबा बिल्कुल ज़ीरो है । और तुम तो जानते हो कि सेक्रेट्री एक्टिव और ट्रेन्ड रखनी चाहिए । खेर मैं देखूंगा कोई



जाब वकेन्सी आई तो बुला लेंगे । " • मुर्तजा उनकी बातें नहीं सुन रहा था । " फादर का एक्सीडेन्ट हुआ है " उसका • दिमाग़ साए साए करने लगा । लड़की ज़रूरत मन्द है । ऐसे कौनसे हालात आ गए कि मरियम इस तरह । वह सोच कर ही गुम सा हो गया । कितना घटिया शरस या यह जिसने पलट कर चचा और मरियम की ख़बर तक न ती । इतने बुरे हालात में भी कि जब मरियम मारी मारी जाब की तलाश में फिर रही है । वह एक झटके से उठा और रहमान साहब से एक्सक्यूज़ करता तेज़ी से घर की तरफ चल पड़ा । यह अम्मां और अब्बा को भी चचा के



 एक्सीडेन्ट का बता कर साथ ले जाना चाहता था । लेकिन जब घर में दाखिल होते ही अम्मां को बताया तो जवाब सुन कर वह खामोश हो गया । " हां में गई तो थी देखने । अब क्या भाई साहब की पट्टी से बन्ध कर बैठ जाते । " " अम्मां ! आपने बताया तक नहीं घर में ? " हैरत और दुख के साथ साथ अफ़सोस ने उसकी रंगत पीली कर दी थी । “ क्या बताती । तुम्हारे अब्बा की तबीअत वैसे ही ठीक नहीं और तुम अपने आफिस के कामों में बिज़ी । बाकी क्या



 मनज़ा और काशिफजाते उनका हालचाल पूछने ? " " अम्मां ! आप बतातीं तो सही । क्या सोचते होंगे चचा कि हालात बदलने पर पलट कर देखा तक नहीं । पूछा तक नहीं । " " सोचते हैं तो सोचते रहें । हमने सबका ठेका तो नहीं ले रखा । " अम्मां की बात पर वह दुख अफ़सोस से सर हिलाने लगा । लेकिन रशिन्दा की तो शुरू से यही आदत थी । 


कम से कम उसे ध्यान रखना चाहिए था । इतने दिनों में सिवाए कुछ एक बार के उसने उधर का रुख भी नहीं किया था । " आपने बहुत ग़लत किया है अम्मां ! बहुत लेकिन आपसे ज्यादा कुसूरवार में हूं जो सगे चचा को भूल गया । मेरी ग़लती है सब । इतने बुरे हालात आ पड़े हैं उन पर कि मरियम नौकरी के लिए धक्के खाती फिर रही है और हम अनजान बने आंखें बन्द किए बैठे हैं । अफ़सोस है मुझ पर । " अपने बालों को हाथों की मुटठियों में



 भींचता वह उठ गया । " बस अपनी जान को रोग लगा लेना अब । उसकी फ़िक्र में घुलते रहना । बावला हो गया है उस कलमूंही के लिए । " तेज़ी से बाहर निकलते मुर्तज़ा को पीछे से आती रखशिन्दा की आवाजें सुनाई दे रही थीं मगर अब वह रुकना नहीं चाहता था । उसे अब देर नहीं करनी थी यह तय था । उसे मरियम को कहे अपने ही लफ़्ज़ों की गून्जती आवाज़ ने तड़पा कर रख दिया था “ मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ करूंगा मरियम ! जिसने मेरे लिए इतनी कुर्बानियां दी हैं । हम सब एक साथ रहेंगे खुशहाल । "











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