उसने फोन रख कर खुद को सोफे

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उसने फोन रख कर खुद को सोफे पर ढीला छोड़ दिया । ' कितना मुश्किल है अजमत खाना तुम्हें भूलना । तुम्हारी यादों से दामन पुड़ाना । वह सारे तुम्हे जो तुम्हारे साथ गुजरे है , अब मुझे हसते रहेंगे । पछतावे बन कर मेरी रगों में दौड़ते रहेंगे । " उस की आखों में रेल चुभने लगी । फिर कई दिन गुज़र गये । वह सारा सारा दिन कमरे में बन्द रहती । अब तो भाभी ने भी उसे तसल्लिया देना छोड़ दी थी । वह कम ही उस के कमरे में झांकती थी । मुलाजिमा ही उसे खाने के लिए बुलाने आती थी और वह सिर्फ घर वालों की नज़रों में अपना एतवार कायम रखने के लिए उस के बीच बैठ कर कुछ निवाले हलक से उतारती थी । आज पूरे पांच दिन बाद भाभी उस के कमरे में आई थी । " समीना ' आज मौसम बड़ा खुशगवार हो रहा है । हल्की हल्की बारिश भी हो रही है । " उन्होंने उस के कमरे की खिड़की खोल दी । सन्तान का खूबसूरत मन्जर शमीना ' की निगाहों के सामने आ गया । यह अभी नहा कर निकली थी । गीले बाल सुलझा रही थी । चलती हुई खिड़की के पास आ गई । " मेरे अन्दर तो बस एक ही मौसम ठहर गया है . यह बरसात तो बहुत हो चुकी मेरे अन्दर । " भाभी होले से हस दी । शमीना ने उन्हें देखा और लव भीन्य लिये । वह पलट कर टहलने लगी कि भाभी ने उसका बाजू बाम लिया । मोसम का हाल सुनाने नहीं " मे तुम्हआई थी । एक खबर सुनानी है । है तो दुख की मगर शमीना ! हिम्मत से सुननी होगी । " भाभी ने अपने ऊपर गहरी सन्जीदगी तारी करते हुए कहा तो शमीना की रगों में खून की गर्दिश तेज़ हो गई । " अब्बी ने तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया है ... कल वह लोग आ कर तुम्हें अंगूठी पहना . .अरे क्या हुआ शमीना ? " भाभी ने घबरा कर उसे थामा जो लड़खड़ा गई थी । " नहीं ..... मैं ठीक हूं । " उस ने खुद को भाभी के बाजुओं से छुड़ा कर करीबी कुर्सी पर गिरा लिया । ' देखो शमीना ! तुम्हें हिम्मत से काम लेना होगा । यह फैसला तुम्हारा ही है । " भाभी ने उसे देखा जो सर झुकाए उस दर्दनाक ख़बर से छलनी हुए दिल को संभाल रही थी । उस का चेहरा ख़तरनाक हद तक सुर्ख हो गया था । " अपनी अना और इज़्ज़त की खातिर तुम ने यह सब किया है तो फिर अब आखिर में आ कर यहां बुज़दिली का सबूत दोगी तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी । " भाभी के जुमले उस के दिल को चीर गये । " कल के लिए खुद को तय्यार कर लेना । " भाभी झुक कर उस के कन्धे को थपक कर कमरे से बाहर निकल गई ।

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